एक ही भूल
एक ही भूल
ना गुजरता तेरी गलियों से तो अच्छा होता
ना आता उस चौबारे पर तो अच्छा होता
रास्ते और भी थे मेरे मंज़िल तक जाने के लिए
ना चुनता जो तेरी राह तो अच्छा होता
न मुड़ता तुझे तकने को तो अच्छा होता
ना खोता तेरे सपनों मे तो अच्छा होता
चेहरे और भी थे हसीं कई आस पास मेरे
निगाहें तुझ पे ना रुकती तो अच्छा होता
कतार लंबी थी लाखों तेरे दीवाने थे
जो मैं गुमशुदा होता हो अच्छा होता
मैंने तो यू ही भर दि या था पर्चा अपना
नाम मेरा जो ना आता तो अच्छा होता
कभी दिल था भारी तो कभी अक्ल मेरी
जो बात अक्ल की मान लेता तो अच्छा होता
चले थे तेरी ओर बेधड़क जो कदम मेरे
रोक लेता जो उनको तो अच्छा होता!
