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Rajeev Ranjan

Tragedy

4.5  

Rajeev Ranjan

Tragedy

बेघर बच्चे

बेघर बच्चे

1 min
475


सुबह की बेला, शहर के समीप 

देखा इक अचंभित वाकया, 

कच्ची उम्र के बच्चों कि टोली ,

बिखरे धुने बालों वाले ,मेले चिथरे कपड़े पहने 

पीठ के बल इक बड़ा पालीथीन का थैला लिए ,

पालीथीन ,करकटो को बीनते जा रहें हैं?

देखता रहा कुछ छण तक ठहर कर ,

उन मासूमो कि विवशताओं को । 

जिन्हें चिंतामुक्त हो बचपन जीना था,

जिन्हें किसी स्कूल में होना था ,

जिन्हें ख्वाब भविष्य का संजोना था ,

जिन्हें नादानी में खोना था ,

उन्हें इक रोटी को तरसते देखा ।

भुख के जवालाकुन्ड में जलते देखा ।

नम आँखों कि वजह देखी ।

जीन्दगी-मौत की सुलह देखी ।

बचपन के उम्र की जवानी देखी ।

देखा वो सारे प्रश्नों को ,

जिन्हें मन स्वीकार नहीं करता ।

कल्पना समझ किसी कहानीकार का ,

जिनपे कोई विचार नहीं करता ।

देखा हालात आजाद भारत का

इक छोटे से पल के दृश्य में ।



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