इंसानियत का परचम कब लहराएगा?
इंसानियत का परचम कब लहराएगा?
सारी दुनियां को सुलाकर
इस घनघोर स्याह रात में
मैं जागकर सोचता हूं
कि जब बादल तेज़ाब बनकर बरसेगा
और बिजली तेज़ाब में घुलकर
अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेगी
तब केसा हश्र होगा
इस हरे - भरे शेष बचे प्रकृति का
तब केसा हश्र होगा
यहां के बुद्धिहीन और बुद्धिशील जानवरों का
ऐसा नहीं होगा
कभी बादल तेज़ाब बनकर नहीं बरस सकता
हां ये विश्वाश की दुनिया का दृढ़ सत्य है
अगर ये भ्रम टूट गया
तो गया होगा ?
ख़ैर छोड़िए ये बेतुक बातों को
चलिए कुछ गंभीर विचारणीय बातें करते हैं
ये धर्म के आगोश में पलने वाली नफरत की आग
जब पूरी दुनियां को अपने आगोश में ले लेगी
और नरसंहार का तांडव शुरू हो जाएगा
तब क्या होगा इंसानियत का
जब सबसे ज्यादा बुद्धिमान प्राणी
सबसे बड़ा मूर्खता कर बैठेगा
तब क्या होगा बुद्धि का
जब नस्ल धर्म का बेबुनियादी भेदभाव
मानवता का हत्या कर डालेगी
तब क्या होगा ईमान का
जब नरसंहार में बहे रक्त के आधार पर
धर्म पहचानना असंभव हो जाएगा और
दूर- दूर तक ना हिन्दू ना मुस्लिम ना सिख ना ईसाई
बस आदमी का लाश ही लाश दिखेगा
तब उस आक्रोश की भावना का क्या होगा
तब तलवार के प्राण संहारक प्रहार का क्या होगा
मैं सोचता हूं
इस विषय पर डूबकर
इस घनघोर स्याह रात में
इंसानियत को धर्म अपना
गुलाम बनाकर कब तक रखेगा
और आखिर कब तक
धर्म का दीवार इंसानों को बांटकर रखेगा
कब हम इंसानों में मानवता के प्रति
असीम प्रेम जागृत होगा और कब हम धर्म के सारे
मानसिक बंदिशों को तोड़कर इंसानियत का परचम लहराएंगे,
कब हम हर इंसानों को गले लगाकर जी भरकर
आंसू बहाकर नफरत के दाग को अपने शक्सियत के
लिबास से धोएंगे
मैंने ख़ुद को धर्म के चंगुल से आज़ाद कर लिया
और पुरे जहां को अपना सगा मान लिया
और इस घनघोर स्याह रात में सोच रहा हूं
कि सारी दुनियां कब इंसानियत के
राह पर चलकर मानवता का परचम लहराएगा।
