अभिव्यक्ति के नाम पर खिलवाड़
अभिव्यक्ति के नाम पर खिलवाड़
अधिकार सभी को चाहिए, पर कर्तव्य का नहीं होता निर्वहन,
अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने, करते संविधान का हनन।
“भारत तेरे टुकड़े होंगे” कहते हैं, अधिकारों की देते हैं दुहाई,
देश विरोधी नारें देते हैं, जाने यह कैसी आजादी है आई भाई।
मन के भाव रुद्ध न हो, इसलिए थी ये बोलने की आजादी,
देशद्रोह का हथियार बन गई, यह अभिव्यक्ति की आज़ादी।
कहते लिखते कुछ भी कहीं भी, करते हैं राष्ट्र का विघटन,
राष्ट्र भक्ति को किया दरकिनार, करते राष्ट्र भाव का खंडन।
तिरंगे का खुल कर करते अपमान, कहकर कि है ये आज़ादी,
जाने कैसे कलुषित हो गई है विचारधारा, आ रही है बर्बादी।
साहित्य के नाम पर भी, हो रहा है अभिव्यक्ति से खिलवाड़,
मन में आता जो लिख देतें, बस भाषा के कोई हर्फ़ दो चार।
साहित्य के नाम पर करते प्रेषित, फेसबुक पर फूहड़ रचनाएं,
नहीं होता इस बात का ख़्याल, कि आहट होती है भावनाएँ।
समझ न पाऊँ इन अभिव्यक्तियों से, कैसे हो साहित्य समृद्ध?
क्यूँ नहीं कहता विरोध में कुछ भी, समाज का वर्ग प्रबुद्ध?
वाणी की मर्यादाएं न रही, विचारों में मिठास कम हो रही,
प्रयोग होता गलत शब्दों का, साहित्य की बदनामी हो रही।
भाषा के नाम पर जुमले बाजी, यह कहाँ की अजीब रीत है,
अभिव्यक्ति के नाम पर बदनामी, यही कइयों की नीत है।
अभिव्यक्ति के नाम पर होता, साहित्य की अस्मिता से बलात्कार,
कैसे समृद्ध होगा ऐसे, किसी भी साहित्य का सृजन श्रृंगार?
न करो यूँ साहित्य को बदनाम, न करो अभिव्यक्ति से खिलवाड़,
कहता आज “रतन” सभी से, अभिव्यक्ति का यूँ न करो संहार।
