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Pinki Khandelwal

Abstract

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Pinki Khandelwal

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आखिरी इच्छा

आखिरी इच्छा

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जीवन एक सुखद स्वप्न सा लगता है और मृत्यु एक शाश्वत सत्य है उसी बीच में फंसा इंसान खुद व खुद समझौता करना सीख लेता है कभी ख्वाहिशों में जीना तो कभी इच्छाओं को मारकर रहना सीख ही लेता है पर हर इंसान की एक इच्छा हमेशा उसके दिल में रहती है जो जुंबा तक तब तक नहीं आती तब तक उसका अंतिम समय नहीं आ जाता... ऐसी ही एक इच्छा उस बेटी की थी जिसकी करूणा भरी पुकार को कर दिया अनसुना....

सुनो क्या थी वो करूणा भरी पुकार 

कोई है...अरे कोई है क्या,

बेचारी घंटों तक कहती रही पुकारती रही,

बचाओ मुझे कोई तो आगे आओ मुझे बचाओ,

अरे मेरा वदन जल रहा है अरे कोई तो सुनो,

पर सब सुनकर भी अनसुना करते रहे,


और वो अकेली कमरे में लडती रही,

खुद से खुद की पहचान से,

और बस यह कह चली गई दुनिया से,

सुना था मैंने मां के मुख से,

दुनिया वैसी नहीं बची बेटा,

कहां था मत निकला करो बाहर,

और आज देख लिया आंखों से,


झुक गया सिर देख दुनिया की हकीकत,

और बहते अश्रू से बस एक आवाज निकली,

न ले कोई बेटी यहां जन्म,

यह बसती लड़कियों के रहने लायक नहीं,

यह बसती.......,


और बस सब और मातम ही मातम,

आज फिर,

एक लड़की एक बेटी एक बहू जिंदा जला दी गई,

और इंसान बस तमाशा देखने पहुंच गया,


यह किसी एक की कहानी नहीं है बल्कि हजारों लड़कियों की कहानी है जो न घरों की चारदिवारी में न खुले आसमान में सुरक्षित है वो तो बस हाथ की कठपुतली मात्र रह गई है जिसे जब चाहे मसल दिया जाता है और दुनिया तमाशा बनाने लगती है।


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