इरादे-वादे देश के जन्मदिन पर
इरादे-वादे देश के जन्मदिन पर
आधी रात मिली आज़ादी,
फिर सुबह हुई हसीन।
उचंग बढ़ी मन में सबके,
सब खुशियों में तल्लीन।।
बंधन सारे टूट गए,
चले गए फिरंगी।
नयी सुबह तो हुई,
मगर माहौल बड़ा अब भी जंगी।।
जंग बड़ी थी अब आगे,
हर मुंह को निवाला देना था।
रहने को छत देनी थी,
हर तन को झिंगोला देना था।।
फूँक के हर रखना था कदम,
अधिकार बराबर देने थे।
छूट गए थे पीछे लोग ,
साथ सभी वो लेने थे।।
इसीलिए सोचा और लिखा,
दो वर्षो तक एक ग्रन्थ महान।
समरस, समभाव था जिसमें पूरा,
नाम था जिसका सविंधान।।
फिर होती गयी प्रगति,
सरकारें आयीं और चली गयीं।
पर जाने क्यों जन मानस को,
संतुष्टि उतनी मिली नहीं।।
कुछ को निवाले मिले,
कुछ के निवाले छिन भी गए।
कुछ के बने महल तो
कुछ के दिवाले निकल गए।।
कुछ की बची लाज,
तो कईयों की लुट भी गयी।
कुछ को मिली साँस
तो कईयों की घुट भी गयी।।
हम रहे पीटते ढोल,
कईयों की चीख़ दबाने को।
धर्म, जाति को उपर लाये,
जरूरतें छिपाने को।।
आज़ादी के नाम पर,
शिक्षा, रोज़गार हुए शहीद।
वैज्ञानिक गिरवी विदेशों में,
खुले न अपने दीद।।
खुले न अपने दीद,
नेताओं से ख़रीदा चश्मा।
लगा कि कोई अवतार आकर,
करेगा नया करिश्मा।।
कोई देश नहीं होता संपूर्ण,
हमको ही बनाना पड़ता है।
बोझा गर ज़्यादा हो तो,
मिलकर ही उठाना पड़ता है।।
खुद से, घर से, आस पास से,
कुछ कर लें प्रारंभ।
कुछ साफ़ करें, शिक्षा दें किसी को,
अब छोड़ दीजिये दंभ।।
धर्म, जाति के छोड़ें ठेके,
स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार उठावें।
कारखाने और खेत बढ़ावें,
हर हाथ को अब कुछ काम दिलावें।।
कोऊ नृप होए हमें का करना,
बहुत कर ली डिबेट।
बहुत फोड़ लीं आँखें सबने,
अब और न कीजिये वेट।
देश का जन्मदिन आज है,
युवक है देश, नए हैं इरादे।
कुछ पहले से बेहतर करेंगे
छोटे से ये खुद से वादे।।
