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anuradha chauhan

Tragedy

4  

anuradha chauhan

Tragedy

सृष्टि की संरचनाएं

सृष्टि की संरचनाएं

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उतरी धरा पर सोचती मैं हूँ कौन

देख इन्हें सबकी खुशियाँ मुरझाई

देखकर रहते सबके चेहरे मौन

बेटी हूँ घर की नहीं कोई पराई


बोझ मत समझो इन बेटियों को

इनसे ही सृष्टि,सृजन चल रहा है

यह धन यह वैभव सब इन्हीं से

इनमें भी लक्ष्मी का अंश जुड़ा है


परिवार पे कोई मुश्किल है आती

यही दुर्गा और काली बन जाती

सरस्वती का सदा स्नेह है इन पर

तभी बच्चों को संस्कार सिखाती


विविध रूप है इन बेटियों के

नहीं कोई बंधन इन्हें बाँध पाया

माँ-बहन और बेटी पत्नी

हर रिश्ता इन्होंने बखूबी निभाया


सिर्फ बेटी बनकर ही नहीं जीती

रिश्तों के लिए यह अश्रु घूँट पीतीं

पर,पुरुष ने न अपना पौरुष छोड़ा

पल-पल स्त्रियों के हृदय को तोड़ा


सदा उन्हें देखा भोग की नज़र से

पर दिल से कभी सम्मान न दिया

बेटी की चाहत कम है अभी-भी

उनको उचित स्थान मिला न अभी-भी 


न फेंकों न मारो न तोड़ो इन्हें

खिलने दो नाज़ुक-सी कलियाँ इन्हें

जगा लो इंसानियत अपने अंदर

अनमोल धरोहर यह बचालो इन्हें


अगर भू से मिटा बेटियों का अस्तित्व

सृष्टि भी मिट जाएगी हो असंतुलित

जीवन व्याप्त है इनकी कोख में

यही सृष्टि की हैं संचालिकाएं


क्यों काँपती नहीं है रूह तुम्हारी

जला देते ज़िंदा मासूम सुकुमारी

नारी से जन्म ले,उसे तड़पाते

जिस्मों को नोचते हाथ नहीं काँपते!



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