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Vaibhav Dubey

Tragedy

4  

Vaibhav Dubey

Tragedy

ये कैसी विदाई?

ये कैसी विदाई?

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लगे माँ बाप को लम्बे बहुत लम्हें जुदाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के


कहा माँ ने सुनो जी,जी बहुत घबरा रहा मेरा

गिराया दूध बिल्ली ने मुझे शंकाओं ने घेरा

चलो उपहार लेकर घर चलें बेटी-जमाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के


पहुँचने से ही पहले उनकी आँखों से बहा दरिया

खबर पाई की बेटी जा चुकी है छोड़ कर दुनिया

जिसे नाजों से पाला था, हैं पल अर्थी उठाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के


किसी जालिम ने अपने ज़ुल्म की हद को भी है तारा

बदन के घाव कहते हैं की बेटी को बहुत मारा

बयाँ ये दर्द करते खून के धब्बे रजाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के


लटकती डोर पंखे से गिरी थी फर्श पर टेबल

अभागी बच सकी न वो किया था हमसफ़र ने छल

रोये माँ बाप क्यों बेटी हवाले की कसाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के


उसे कायर ने लालच में सताया और तड़पाया

कुबूला सच जमाई ने कि क्यों फाँसी पे लटकाया

पीये दिन रात दारू,थे नहीं साधन कमाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के


तुम्हारी मांग को कैसे ये हम आकार दे पाये

बिका जब खेत, ट्रैक्टर तब तुम्हें घर, कार दे पाये

बुढ़ापे के लिए पैसे न बच पाये दवाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के


फसल लालच व दौलत की जो भी दिन रात बोता है

उठाये हाथ औरत पर नहीं वो मर्द होता है

बहू तो घर की लक्ष्मी है नहीं साधन कमाई के

अभी महीने हुए थे चार बेटी की विदाई के



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