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अमर बलिदान

अमर बलिदान

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स्वाभिमान,सम्मान की ख़ातिर न्यौछावर निज प्राण किये

देश के अमर सपूत थे वो बिन स्वारथ ये अनुदान किये।


श्वांस, रक्तकण भेद अनन्त 

जो छुपे  थे अन्तःकरणों में

शीश रूपी पुष्प भी अर्पित 

कर दिए थे माँ के चरणों में


धन्य हुई ये धरा तनिक भी वीर नहीं अभिमान किये

देश के अमर सपूत थे वो बिन स्वारथ ये अनुदान किये।


यही सारी धरा करने लगी

और ये  गगन करने लगा

होंठो से लगाकर जब चूमा 

फंदा भी रुदन करने लगा


वो हंसकर बोले चुप हो जा बस अभी तो ये अनुष्ठान किये

ेश के अमर सपूत थे वो बिन स्वारथ ये अनुदान किये।


इंकलाब के नारे लगाए

गर्व  से  सीने फूल गए

रंग दे बसंती चोला गाकर

वो फांसी पर झूल गए


जन-जन में जीवित रखना हमें ये अंग-अंग आह्वान किये

देश के अमर सपूत थे वो बिन स्वारथ ये अनुदान किये।


अनुसरणीय है परोपकार ये

उनके विचार अनुकरणीय हैं

भगत,देव और राजगुरु सम

देशभक्त  अविस्मरणीय  हैं


बचपन, सपने , प्रेम देश  पर तरुणाई  कुर्बान किये

देश के अमर सपूत थे वो बिन स्वारथ ये अनुदान किये।


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