Vaibhav Dubey

Inspirational

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Vaibhav Dubey

Inspirational

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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जरा सोचो भला क्यों यार भ्रष्टाचार ज्यादा है

पराई चीज पर दरअसल यहां अधिकार ज्यादा है


गुलाबी रंग पर सोचो सियासत शोर क्यों करती 

कमी नोटों की है वोटों का भी व्यापार ज्यादा है


तुम्हारे देश में जितनी घरों में रोटियां बनती

यहां उतने मुहल्ले में बने आधार ज्यादा हैं


कभी तारीफ़ करता है कभी बदनाम करता है

बिना पैंदी का लोटा तो लुढ़कता यार ज्यादा है


हक़ीक़त को छुपा कर झूठ अक्सर बोलता रहता

वो गन्दी सोच के आगे अभी लाचार ज्यादा है


जरा संसार के सारे किनारों को बड़ा कर दो

हमारे हौंसलों की जीत का आकार ज्यादा है


खिलाये खेल वैभव वक़्त के किरदार ऐसे हैं

कभी मासूम बच्चे सा कभी मक्कार ज्यादा है


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