अकड़ी लाश
अकड़ी लाश
सर्द रात में अकड़ी हुई एक लाश कहे
फिर से कारोबार हुआ है सांसों का
भूखी आस ने फुटपाथों पर दम तोड़ा
सड़कों पर व्यापार हुआ है सांसों का
लावारिस ये लाश लाभ गर देती तो
गिद्ध सरीखे इंसा पास खड़े होते
हाथ कई अर्थी को उठाते कन्धों पर
पांव कई मरघट तक साथ बढ़े होते
मगर गरीबी श्राप थी यूँ मरने वाला
मरकर जिम्मेदार हुआ है साँसों का
अगर ये अफवाह उड़ती कि ये राजा था
आँसू घड़ियाली भरकर आंखें आतीं
सिंहासन के लालच में ले शकुनि के
पासे जिंदा लाशें पास में आ जातीं
शर्मसार है मानवता निर्वस्त्र हुई
सामूहिक बलात्कार हुआ है सांसों का
तरस है खाकर कुछ सांसें वापस आकर
बोलीं लाश से उठो जो होगा होने दो
मुंदी हुई दोनों आंखों से अश्क बहे
अंदर से आवाज़ ये आई रहने दो
जहां स्वार्थ है दया नहीं उस दुनिया में
आना फिर बेकार हुआ है सांसों का
सर्द रात में अकड़ी हुई एक लाश कहे
फिर से कारोबार हुआ है सांसों का..
