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Vaibhav Dubey

Abstract

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Vaibhav Dubey

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आ गई होली-ठिठोली की ये ऋतु

आ गई होली-ठिठोली की ये ऋतु

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दिल मिले,शिकवे मिटे इस पर्व की सौगात है

आ गई होली-ठिठोली की ये ऋतु क्या बात है


प्रीत की सरिता बही डूबे हैं आँगन रंग में

अंग हैं मदमस्त पीकर भंग,फागुन रंग में


मुख सभी पीले,गुलाबी,लाल,काले हो गए

प्रेम की अनुभूतियों में इस कदर सब खो गए


बज रहे हैं ढोल-ताशे जीत की ये रात है

आ गई होली-ठिठोली की ये ऋतु क्या बात है


लौट कर परदेश से बेटे-बहू घर आ गये

बूढ़ी माँ की आँखों में खुशियों के बादल छा गये


दिल सभी के भर गए हैं इक हसीं अहसास से

हो रही बर्षा मिलन की भीगे सब उल्लास से


गूँजता कानों में है ये कुदरती नगमात है

आ गई होली-ठिठोली की ये ऋतु क्या बात है


पापड़ों की चुरमुराहट और गुझियों की महक

शोर बच्चे कर रहे हैं जैसे चिड़ियों की चहक


घुल गया महुआ हवा,में रंग टेसू भर रहे

चल रही मस्तों की टोली लोग स्वागत कर रहे


होली में सूरज बराती,चाँद की बारात है

आ गई होली-ठिठोली की ये ऋतु क्या बात है!


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