नन्ही लाश
नन्ही लाश


हर कतरा दिल का आज बिलक के रोया है,
कई यशोदाओं ने अपने कृष्ण को खोया है।
मूक दर्शक बनकर धृतराष्ट रुपी
नेता सिर्फ निहार रहे हैं,
और छोटे छोटे बच्चे मौत से जंग हार रहे हैं।
उस मासूम ने तो दुनिया कहा देखी थी,
खैरात समझकर जो भीख उसकी तरफ फैंकी थी।
मना करदी उसने तुम्हारी सौगात अपनाने से,
काफी समय बचा था शायद उसके वोटर बन जाने में।
नासमझ था वो जो समझ पाता चक्रव्यूह तुम कौरव का,
आंसू बहते रहे और तुम मनाते रहे जश्न अपने गौरव का।
कहीं 100, कहीं 200 बस इतना ही तो आंकड़ा छुआ है,
गरीब का बच्चा है साहिब,
इनकी ज़िन्दगी तो वैसे भी एक जुआ है।
उस गरीब का क्या सिर्फ इतना ही कसूर था,
बाजू मे था प्राइवेट, पर
सरकारी अस्पताल जाने को मजबूर था।
हम डूबे थे जिस दिन फादर्स डे मनाने में,
वो जद्दोजहद में था अपना घर का चिराग बचाने में।
उसकी आँखों के सामने चूर हो रहा था उसका सारा सपना,
गले लग कर बाप के बोला,
बाबा मुझे बचा लो, मुझे ऐसे तड़प के नहीं मरना।
हर सांस के साथ क्षीण हो रही थी उस बाप की आशा
हम दूर बैठ जब देख रहे थे मंदिर मस्जिद का तमाशा।
अब कहाँ है वो प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला या संबित पात्रा,
जब निकल रही थी बीच गाँव से उस नन्हे की शव यात्रा।
कैसी है ये नियति, कैसा है विधि का विधान,
चढ़ कर जाना है बाप के कंधे पर ही,
बस इस बार मंज़िल है शमशान।
उस औरत का क्या जिसने अपना सब कुछ खोया है,
9 महीने अपनी कोख में उसको रख कर ढोया है।
तोड़ दिया वो वादा जो उसे अपनी माँ से निभाना था,
खेल जल्दी ख़त्म कर के उसे घर भी तो वापिस जाना था।
अब भी टिकी है चौखट पे, उस माँ की सारी निगाहें,
कौन समझाये उस बेचारी को अब सदा सूनी रहेगी उसकी बाहें।
बेसुध हो रही है बेचारी ये निर्मम दृश्य देख के,
ओढ़ता था जो मा का आँचल, सोया है मौत का कफन लपेट के।
मेरा मुन्ना सो रहा है, अभी कुछ देर में मेरे गले से लग जाएगा,
समझाओ कोई उसे की उठ चुकी है राख़,
अब अगले जन्म ही ये मुमकिन हो पाएगा।
आज तो भगवान् के अस्तित्व से भी मुझे घृणा आ रही है,
अपना दूध पिलाने वाली माँ अपने ही हाथों से
तेरहवीं का खाना बना रही है।
धर्म के पहरेदारो अब पता करो धर्म उस नन्ही जान का,
कफन का रंग था सफ़ेद अब बताओ हिन्दू या मुस्लमान था ?
वो तो चला गया हर रिश्ते नाते को छोड़ के,
पर बेशर्म हैं ये नेता आ जाएंगे फिर
कुछ साल बाद हाथ पाओं जोड़ के,
वो आंसू, वो चीख फिर से दब जाएगी,
वो नन्ही लाश की तड़प किसी को ना याद आएगी।
तुम्हारे इस गुनाह की सजा तुम्हे मुकद्दर ही देगा,
जब खुद की औलाद को तू बेबस और लाचार देखेगा,
हर शमशान के बाजू से तू जब भी निकलेगा,
तेरे कर्मो का फल तेरी ज़िन्दगी को निगलेगा।
टूट जाएगा तू, याद करेगा हर मरती हुई जान,
शायद तब समझ पाए तू क्या होता है असली इंसान।