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Sudha Adesh

Tragedy

4  

Sudha Adesh

Tragedy

गांधी जयंती

गांधी जयंती

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आज फिर

गांधी जयंती समारोह में

जाने के लिए 

साल भर से उपेछित 

बंद बक्सों से 

खादी के

कुर्ते पाजामे 

निकाल आए हैं।


गांधीजी की प्रतिमा से 

धूल मिट्टी की 

इंचों पड़ी धूल को 

साफ कर पानी से 

धुलवाया गया है। 


चश्मे की एक कमानी 

टूट गई है तो क्या 

हारी थकी नेराश्य से 

भरी आँखों में चश्मा तो है।


लंगोटी तार-तार 

हो चुकी है तो क्या 

महान भारत की 

लाखो करोड़ों जनता भी 

तो ऐसे ही वस्त्रों से 

सुस्स्जित है। 


जनता जनार्दन को 

तीन घंटो का 

इंतजार करा कर 

खादी के वस्त्रो में

सुशोभित नेताजी 

सभास्थल पर पहुँचे।


गांधीजी के आदर्शो को 

अनमयस्क मन से दोहरा कर,

उनका जयगान कर 

हारे थके घर लौटे,

पत्नी से बोले,

 खादी के 

इन मोटे कपड़ो का बोझ

अब सहा नहीं जाता।


पेरिस से मंगाया मेरा 

सिल्क का कुर्ता

पाजामा ले आओ 

तथा इन्हें बक्सो में 

बंद कर दो।'


उनकी बात सुनकर 

अर्धांगिनी ने 

चुहुल करते हुए कहा, 

' इन वस्त्रो में 

आप सच्चे नेता लग रहे हो

श्वेत धवल कपड़ो में

 सचमुच चमक रहे हो।'

 

सुनकर नेताजी के 

चेहरे पर चमक आई 

फिर स्वयं को सोफे मे 

छिपाते हुए मायूस स्वर में बोले,

क्यों मज़ाक बनती हो,

एक समय था जब खादी

स्वच्छ विचारों, 

पवित्रता का प्रतीक थी 

पर आज यही खादी,

ढोंग और ढकोसलों का 

पर्याय बन गई है।


गांधीजी और गांधीवाद से 

आज किसी का 

वास्ता नहीं रहा 

आज तो यह सिर्फ 

सत्ता सुंदरी तक 

पहुँचने का जरिया बन गई है। 


जालसाजी, भ्रष्टाचार,

रिश्वत और घोटालो के युग में

उनके आदर्श 

तार-तार हो गए हैं । 

निज स्वार्थ हेतु 

लोग देश की अस्मिता को 

विदेशियों के हाथ बेच कर 

अपनी तिजोरियाँ भर रहे हैं।


पर मैं ऐसा नहीं कर सकता 

वर्ष में एक बार खादी धारण कर 

उस महान आत्मा को 

याद करना अलग बात है।


पर इसे धारण कर 

नित्य उनकी आत्मा पर 

होते प्रहारों को 

सह नहीं सकता 

अब न स्वयं को  

बदल सकता हूँ न समाज को

शायद यही अब हमारी 

नियति बन चुकी है।


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