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आकांक्षा

आकांक्षा

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निशीथ के गहन अंधकार में

अतीत की गहराइयों में डूबकर

न जाने क्यों 

हो रही हूँ व्यथित ?


अतीत...

नैराशय और व्यथा से पूर्ण

चाहती हूँ भुलाना

परन्तु असंभव

छलावा मात्र...


रह-रहकर मंडराना

मन-मस्तिष्क में

अनकही विवशता,बेचैनी...


न कब, किस घड़ी

अतीत को छोड़

अभिशपत, अग्नि दग्ध 

ह्रदय को

सावन की सुखद सलोनी

बूँदों से कर शीतल,


भविष्य के सुनहरे 

स्वप्नों की ओर 

हो पाऊँगी अग्रसर।


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