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Sudha Adesh

Abstract

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Sudha Adesh

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कैसी खामोशी

कैसी खामोशी

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यह कैसी दहशत

कैसा डर

कैसी खामोशी 

छाई आज चुहुँ ओर ।


इंसान ही इंसान का

बन बैठा दुश्मन

छिपा बैठा

अपने ही बिल में...


हराना है गर

इस सूक्ष्म वायरस को

 सामाजिक दूरी है

आज जरूरी ।


शेखी में गर

बाहर निकले तुम

लील जाएगा यह

 क्रूर वायरस जिंदगी ।


नहीं देखेगा तुम्हारा

सूट बूट से सजा शरीर

न छोड़ेगा किसी गरीब की कुटिया ।

सब बराबर हैं इसके लिए


बेमतलब के टोटके

मंदिर, मस्जिद,

 गुरुद्वारे, चर्च भी

न बचा पायेंगे तुम्हें...।


हाँ जाते-जाते 

संदेश जरूर दे जाएगा

देश, जाति, धर्म भाषा से परे

हम सिर्फ मात्र शरीर हैं ...।


शांति से रहो,

शांति से रहने दो

वसुधेव कुटुम्बक 

मात्र शब्द नहीं, सच्चाई है ।



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