हूँ दीप शिखा
हूँ दीप शिखा
चौथ का चाँद
खेले आंखमिचौली
बेचैन नारी।
दिखा चाँद
तन-मन हुलासा
तपस्या पूर्ण।
अजब रीति
जली जिसके लिए
तोड़े स्वप्न।
भग्न हृदय
जोड़ना सीखा मैंने
हारूँगी नहीं।
चलूंगी संग
तू है मेरा, मैं तेरी
मेरा विश्वास।
न ले परीक्षा
मोम की नहीं नारी
है दीपशिखा।