आक्रोश
आक्रोश
दिलों में बंद आक्रोश
जब निकलेगा
चिंगारी उड़ेगी ही
तुम जलो या मैं
फ़र्क़ क्या पड़ता है ।
फ़र्क़ क्या पड़ता है
जब आदमी ही आदमी के
ख़ून का हो जाये प्यासा
ख़ून बन जाये पानी ।
ख़ून बन गया है पानी
तभी दरिंदगी पर
दहशतगर्दों की
ख़ून नहीं खौलता ।
ख़ून खौले भी तो
भला खौले कैसे
जब हम आस-पास की
दुनिया से बेख़बर
अपनी ही दुनिया में
रम गये हैं ...।
दर्द दूसरों का
देता नहीं दिखाई
निज स्वार्थ में
होकर अंधे
कहीं हैवान
तो नहीं हो गए!
सुधा आदेश