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Bishna Chouhan

Tragedy

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Bishna Chouhan

Tragedy

मानस

मानस

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वो पहला क़तरा तेरे दूध का ऐ माँ

जो न पड़ता मेरे मुँह में तब क्या ज़िंदा

रहता मैं?

तब क्या वहशी बनता, तब क्या रौंद

देता अस्मत

नोच खाता गिद्ध सा, साँस लेते नन्हे बदन


फैलाता न मैं कोई दहशत, बहा न सकता

ख़ून मन्दिर-मस्जित गिरजाघर क्या पूजता?

क्या बम फोड़ता? तुझसे छुड़ाता क्या दामन

बोल के झूठ तुझे अपने से दूर करता क्या


तुझे अनाथ बे-औलाद करता थाम के मेरी

नन्ही अंगुली क्या मैं दौड़ना सीखता क्या

तेरे झुर्रियों से भरे उन्हीं हाथों को लरज़ते

हुये छिड़कता

वो पहला क़तरा तेरे दूध का ऐ माँ जो न

पड़ता मेरे मुँह में तब क्या ज़िंदा रहता मैं???


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