मानस
मानस
वो पहला क़तरा तेरे दूध का ऐ माँ
जो न पड़ता मेरे मुँह में तब क्या ज़िंदा
रहता मैं?
तब क्या वहशी बनता, तब क्या रौंद
देता अस्मत
नोच खाता गिद्ध सा, साँस लेते नन्हे बदन
फैलाता न मैं कोई दहशत, बहा न सकता
ख़ून मन्दिर-मस्जित गिरजाघर क्या पूजता?
क्या बम फोड़ता? तुझसे छुड़ाता क्या दामन
बोल के झूठ तुझे अपने से दूर करता क्या
तुझे अनाथ बे-औलाद करता थाम के मेरी
नन्ही अंगुली क्या मैं दौड़ना सीखता क्या
तेरे झुर्रियों से भरे उन्हीं हाथों को लरज़ते
हुये छिड़कता
वो पहला क़तरा तेरे दूध का ऐ माँ जो न
पड़ता मेरे मुँह में तब क्या ज़िंदा रहता मैं???
