जहमत नहीं हुई
जहमत नहीं हुई
प्यार में कभी सोचने की
फुर्सत नहीं रही,
मिलने पर बात करने की
हिम्मत नहीं रही।
कभी देखा उनहोंने
जिन नज़रों से,
निगाहों को सम्भालने
की कूबत नहीं रही।
रोज करते थे प्यार इन्तहा उनसे
मगर मौका पड़ने पर
बताने की जुर्रत नहीं रही।
इस कदर तन्हा हुए हम
उनकी याद में,
उनसे मिलने पर मेरी ख़ामोशी
पसर गयी।
वो जानते थे मेरी कसम-कश
इस कदर,
फिर भी कोई पहल उनसे
नहीं हुई।
इस कदर दूर रहते हैं,
वो हमसे
फिर से आगाज़ करने की,
जहमत नहीं हुई।