तुम्हारे लिए
तुम्हारे लिए


मैंने तुम्हारी प्रशस्ति में
कविताओं की बाढ़ ला दी थी,
अपने प्यार में डुबोने के लिए,
तुमने कानो में रख लिए थे हाथ
और बाढ़,
सूखे में बदल गयी थी।
मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिए,
लगा दिए थे लक्ष्मी के ढेर
और तुमसे खेलने को कहा था ,
तुमने घृणा से मुंह सिकोड़ लिया था
और लक्ष्मी,
सांप –बिच्छु बनकर डसने लगी थी।
तुम्हे पाने के लिए
मैंने अपने आप को मिटाकर
हसरतों की खड़ी कर दी थी ,
मंजिलें,
और तुमसे कहा था, रहने को
तुमने सिर्फ तिरस्कार से,
देखा भर था
और मंजिले,
भरभरा कर गिर पड़ी थी।
मैने, तुम्हारे स्वागत के लिए
बिछा दिए थे
फूलों के गलीचे
और तुम्हे आने को कहा था,
तुम नहीं आई।
वही फूल –अब
मेरी मजार पर चढ़ा दिए गए है।