वक्त की बाते
वक्त की बाते
वक्त की है सारी बातें
इस दरिया को मुसलसल बह जाने दो
किसी रोज़ जो टाकरा जाये मेहबूब के आँखों से नज़र
तो उन आँखों को धीमे से पढ़ लेने दो
धड़कने बढ़ जाए तो क्या
बस वक्त को थम जाने दो
इश्क़ होता है तो क्या
मुक़म्मल कायम हो जाने दो
उस पल को खीचो सौ सदियो मै
हर ज़र्रे को महसूस कर जाने दो
कभी लागे के जहर सा है इश्क़
तो खामोशी से नसो में उतर जाने दो
बस वक्त की बाते है
और वक्त के इस दरिया मै कैद हुए हम
इस दरिया को मुसलसल बह जाने दो।