इश्क़
इश्क़


हाँ खो जाना चाहता हूं
इन वादियों में
भूल जाना चाहता हूं
अपनी शख्सियत कहीं
जीना चाहता हूं अपना
किरदार
पाना चाहता हूं वो इश्क
जिसके सहज रूप की
झलक
सीमा में बंध नहीं बल्कि
इस प्रेम की वादी में
खोकर कर मिलेगी
जहाँ हर नजारा ताजा
होगा
क्या पता मिल जाये
मंजिल
जैसे ढूंढ ही लेती है
चिड़िया अपना पेड़।