STORYMIRROR

rudraksh sharma

Abstract

4  

rudraksh sharma

Abstract

तिरना

तिरना

1 min
208


झरने का पानी

सूखी मिट्टी

गिरते पत्ते

टूटे पंख


कितनी ही चीज़ें

गिरते हुए

एक बार फ़िर

भर लेती हैं उड़ान

हवा के बहाव में

खुले आकाश में


उड़ान के साथ

पीछे देख अपने लम्हों को

कभी मचलते

और ऊपर उठते

तो कभी ठहर 

फिर तिरते


अंत में शांत, स्थिर हो

स्वयं में समाते

छू ही लेते हैं

अपने नए आरम्भ को।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract