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rudraksh sharma

Abstract

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rudraksh sharma

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तिरना

तिरना

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झरने का पानी

सूखी मिट्टी

गिरते पत्ते

टूटे पंख


कितनी ही चीज़ें

गिरते हुए

एक बार फ़िर

भर लेती हैं उड़ान

हवा के बहाव में

खुले आकाश में


उड़ान के साथ

पीछे देख अपने लम्हों को

कभी मचलते

और ऊपर उठते

तो कभी ठहर 

फिर तिरते


अंत में शांत, स्थिर हो

स्वयं में समाते

छू ही लेते हैं

अपने नए आरम्भ को।


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