STORYMIRROR

rudraksh sharma

Abstract

4  

rudraksh sharma

Abstract

चाँद या तारे

चाँद या तारे

1 min
246


खींच दी चादर उजाले की 

 अंदर देखा तो रात थी

 याद आ गए 

 वह मीलों दूर के ढके खोए सितारे


देखता रहा 

आकाश भर गया इन यादों से 

सब आज भी वही थे 

वैसे ही टिमटिमाते खिलखिलाते 


खो गया इन्हें गिनते गिनते 

चांद सब देखता रहा 

टूटते गए गिनते सितारे 

हिसाब पक्का हो ना सका

ख्वाहिशें याद ना आई

तब इस याद में 

टूटता में देखता रहा 


आंख़े खोल फिर ऊपर देखा 

चांद अब तक साथ था 

रोज ढूंढता रहा चांद को 

वह अधूरा ही सही 

लौटकर आता रहा!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract