चाँद या तारे
चाँद या तारे


खींच दी चादर उजाले की
अंदर देखा तो रात थी
याद आ गए
वह मीलों दूर के ढके खोए सितारे
देखता रहा
आकाश भर गया इन यादों से
सब आज भी वही थे
वैसे ही टिमटिमाते खिलखिलाते
खो गया इन्हें गिनते गिनते
चांद सब देखता रहा
टूटते गए गिनते सितारे
हिसाब पक्का हो ना सका
ख्वाहिशें याद ना आई
तब इस याद में
टूटता में देखता रहा
आंख़े खोल फिर ऊपर देखा
चांद अब तक साथ था
रोज ढूंढता रहा चांद को
वह अधूरा ही सही
लौटकर आता रहा!