पत्थर
पत्थर


सख्त नुकीले पत्थर को
जब फेंका दिया तालाब में
ना पानी ना धूप पर
वह भाव पत्थर ने सोख लिया
डूब चला यह पत्थर तेजी से
तिरस्कार जो पाया था
सालों तक कैद रहा
वह भाव अंदर
यह पत्थर क्या दिल बाँटता
पड़ा रहा एक कोने में
इसके अंदर कौन झांकता
टकराते बहते
एक अंकुर कहीं से फूट गया
जड़ो ने इस पत्थर में से भी
कुछ सोख लिया!