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Saroj Garg

Abstract

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Saroj Garg

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गोपाष्टमी

गोपाष्टमी

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भारत की पावन भूमि पर, गाय हमारी माता है। 

हर अंग में देव बसे हैं, ऐसी पवित्र गौ माता है।


चार धाम का पुण्य कमा लो, गौ माता की सेवा करके।

जीवन के सब कष्ट हरेंगे, हर जन के हितकारी बन के।


सगरे वेद पुराण भी इसकी, महिमा मंडित गाते हैं। 

हम भी इसकी महिमा जाके, भव सागर तर जाते हैं। 


कान्हा ने जब इनका मान बढ़ाया, जन-जन को गौ प्रेमिल बनाया। 

हमको मिलता दूध, दही, घी, औषधि सा गुणकारी है। 

स्वास्थ्य प्रदान करे यः वस्तु,सारे रोग निवारक हैं। 


मुरली धर इसी दिन गौ माता को चराया था।

माँ-बाबा ने पूजन करके, वन में इनको पठाया था।


इसी दिन

से कान्हा और ग्वालों ने,

मिलकर गाय चराई थीं। 

इसीलिए गोपाष्टमी कहते, गऊएं चराना शुरू किया था।


मधुर मुरलिया की धुन सुनकर, गाय दौड़ी आती थीं। 

उनको प्रेम पास में बाँधा, उन्हें देख रम्भाती थीं। 


गोकुल वासी ने मिल कर फिर पूजन गऊ माता का करते। 

ऋषियों ने भी की थी सेवा, और वरदान भी पाते। 


गिरिधर कृष्ण मुरारी ने, इनका मान बढ़ाया था।

गौ माता की रक्षा करने, का बीड़ा भी उठाया था।


कृष्ण की मुरली गाय पास में, देख सभी हर्षाते हैं। 

बछड़ो के संग क्रीड़ा करके, ग्वाले सब हर्षाते हैं। 


जय गिरिधर गोपाल की, जय गौमाता की।



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