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Saroj Garg

Others

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Saroj Garg

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शीतल छाँव

शीतल छाँव

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 शीतल छाँव मिले पथ में, 

यह सोचत है मन की अखियाँ। 

कानन हो जग में तब ही, जब बारिश हो पथ की बगियाँ ।।

वृक्ष लगें जब पीपल का, फिर शीतल हो पग की गलियाँ  ।

पावन निर्मल रूप लगे,तब ही बहती लहरें नदियाँ।।


कुंजन मोहक रूप सजा ,

लख फूल खिले मन भावन है ।

रंग भरी तितली उड़ती खिलते तब पुष्पित सावन है।।

बारिश की जब बूंद पड़े, 

तब बादल की सुर छावन है।

साथ चले पुरवा महके ,

तब झूम उठे मन गावन है।।


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