माँ सांसों की डोर
माँ सांसों की डोर


इंसान तो है,
लेकिन इंसानी रूप में भगवान की मूरत है माँ,
ममता से भरा दरिया,
सागर से भी गहरा सागर है माँ।
खुद की ख्वाहिशों की गठरी बांध फेंक देती है माँ,
बच्चों की और पति की ख्वाहिशों को अपना मान लेती है माँ,
जीवन भर अपनों के लिए जीती है माँ।
तेरी मुस्कुराहट से रोशन यह जहां है माँ,
तेरी खामोशी से डूबता यह जहां है माँ,
तू है तो सांसो की यह माला है माँ
तू नहीं तो जिंदगी ने भी खुद से हमको निकाला है माँ।
पीयूष बाबोसा कहता है तुझसे बढ़कर कोई नहीं है यहां,
तू ही धूप तू ही छांव,
तू ही हर त्यौहार हर मौसम है माँ,
तू ही मेरी थकान भरी जीवन के आराम है माँ।
तू है तो अ आ इ ई है माँ,
तू है तो ऐ बी सी डी है माँ,
तू है तू ही गणित का ज्ञान है माँ,
तू है तू ही विज्ञान है माँ।
इंसान तो है,
लेकिन इंसानी रूप में भगवान की मूरत है माँ,
ममता से भरा दरिया,
सागर से भी गहरा सागर है माँ।