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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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हरियाली

हरियाली

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कल्पनाओं के विस्तृत नभ को पारकर,

जब जीवन की गहराई को माप सकूँ।

जब मिट्टी से मैं जुड़कर मिट्टी में पलकर,

नभ की ऊँची उड़ान को नाप सकूँ।

तभी आह्लादित हो जाता है मन मेरा,

जैसे पेड़ों पर हरियाली छा जाती है।


जब नफरत की हर दीवार को तोड़ कर,

प्रेम को मैं पास महसूस कर पाऊँ।

जब विरह की कड़वी यादों को भूला,

मिलन की आस में मैं खो जाऊँ।

तभी खुशियों की धनक बिखेरते हरी

दूब सा मैं बिछ हरियाली फैलाऊँ।


जब अनवरत प्रयास का कोई मीठा

सा मैं जीवन में फल पाऊँ।

जब लगातार हारों के बाद जीत के

जश्न में मैं खो जाऊँ।

तभी मुस्कान बिखेरू मैं इस जहां में

जैसे पेड़ों के शाखों से लगे हो पत्ते।


हरियाली का यह आभास जीवन में

 खुशहाली लेकर आये।

हरे भरे पेड़ों सा यह जीवन उपवन सदा ही 

जीवन में बहार फैलाये।


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