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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Abstract Romance

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Abstract Romance

बिना तुम्हारे प्राण प्रिये !

बिना तुम्हारे प्राण प्रिये !

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दो पग है दूभर चल पाना, बिना तुम्हारे प्राण प्रिये!

अंतस में छाया वीराना,  बिना तुम्हारे प्राण प्रिये!


नयन छिपाये मेघ अश्रु के, रह-रह पीर निरन्तर बरसे।

कब तक सिसके प्रीति बैठकर, तन मन भला कहाँ तक तरसे ।

बाँह पसारे खड़ी भावना, राह नहीं पर कोई सूझे।

मौन तड़पती अभिलाषाएँ, स्वीकारोक्ति स्वयं से जूझे।

हुआ कठिन अब वचन निभाना, बिना तुम्हारे प्राण प्रिये!

अंतस में छाया वीराना, बिना तुम्हारे प्राण प्रिये!

  

निर्जन गलियाँ, सूने नुक्कड़, व्याकुल आँगन, घर, चौबारे ।

आहत उपवन, गुमसुम कलियाँ, बेबस मौसम खड़ा निहारे। 

गीत सुनातीं प्रेम विरह के, साथ हवा के निष्ठुर सुधियाँ,

देह सुकोमल तपे जेठ सी, पूस माघ सी काँपे खुशियाँ...

भटक रहा मन, कहाँ ठिकाना, बिना तुम्हारे प्राण प्रिये !

अंतस में छाया वीराना,  बिना तुम्हारे प्राण प्रिये!



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