चंचल-चंचल नेत्र तुम्हारे
चंचल-चंचल नेत्र तुम्हारे
चंचल-चंचल नेत्र तुम्हारे,
सम्मोहन की हाला।
रूप तुम्हारा प्रिये प्रकृति के,
यौवन की मधुशाला।
सांसों के झंकृत साजों से,
जीवन भी गति पाते।
प्रिये तुम्हारे भोले मन में,
पत्थर भी घुल जाते।
प्रेम ग्रंथ की अमर ऋचाएँ,
रचते और सुनाते।
अधर तुम्हारे जीवन को स्वर,
दे देते मुस्काते।
करुणा दया क्षमा के गहने,
लाज तुम्हारा बाना।
तुम जीवन की अमर शिखा हो,
और जगत परवाना।

