नारी कहलाती हो
नारी कहलाती हो
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गुड़िया गुड़िया खेल के, पापा की गोद में
तुम ना जाने कब बड़ी हो जाती हो
फिर एक दिन लाल रंग का जोड़ा पहनकर
अपने ही घर से विदा हो जाती हो
भाई की कलाई में धागा बांधकर
तुम उसकी रक्षा की मन्नत मानती हो,
ऐसी कई मन्नतों के बदले में
सिर्फ एक चॉकलेट में ही मान जाती हो
बिन कुछ कहे, सब कुछ सहे तू
अपने कितने अरमानों को दिल में
दबाये रखती हो,
ऐसे ही एक माँ बनकर अपने
बच्चों की खुशी में
तुम अपनी खुशी ढूंढ लेती हो
इस धरती पे आने से पहले
कोख में ही पूरी दुनिया से लड़ जाती हो
फिर भी क्यूँ तुम इस दुनिया के
टुच्चे रीत रस्मों से मात खा जाती हो
हाथ में चूड़ियाँ पर पूरी दुनिया के सामने
लड़ने की ताकत रखती हो
बात कोई दिल पे लग जाए तो सबके सामने
आँसू बहा के दिल बहला लेती लेती हो
आज हर एक काम में
तुम आदमी के कंधे से कंधे मिलाती हो
इसीलिए तुम ये सारे जहां में
सर्वशक्तिशाली नारी कहलाती हो