लिख दिया
लिख दिया
ख्याल आधी रात को आया के कुछ लिख दिया
मात्रा को कम-ज़्यादा करके कुछ लिख दिया।
काफिये समझ में नहीं आये इस ग़ज़ल के तो
बार बार मन की बातों को कोरे पन्ने पे लिख दिया।
सोचा इस शब्द को यहाँ रखूँ उस शब्द को वहाँ
फिर अल्फाज़ों की कशमकश को ऐसे ही लिख दिया।
गर्म लहू सी स्याही से कभी राज़ तो कभी सच्ची बात
फिर इन्सानों ने टोका इसने देख क्या क्या लिख दिया।
अपने दोष शीशें की तरह सामने दिख ही जाते थे
फिर कहते थे इसने तो बहुत बकवास लिख दिया।
गहराइयों को अनदेखा करके किनारे गोते लगाए
उसने कभी न सोचा शब्द रूप में मोती कैसे लिख दिया।।
