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ज़िन्दगी तुम इस तरह मुंतशिर हो

ज़िन्दगी तुम इस तरह मुंतशिर हो

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समेटू टूटे हुए सपनो के बिखरे टुकड़े

तो हज़ार और सपने दिखा जाती हो

इस ख्वाब को सच करने ना जाने कितनी बार गिराती हो

ज़िन्दगी तुम इस तरह मुंतशिर हो


नींद लगते ही तुम उठा देती हो 

हार के बैठ जाऊं तो मना कर देती हो

सुबह से लेके शाम तक एक पल भी नही रुकती हो

ज़िन्दगी तुम इस तरह मुंतशिर हो


हारने के बाद तुम ही होंसला देती हो

जीतकर कैसे सम्भलना वो भी सिखाती हो

सही और गलत के फर्क के लिए ठोकर भी लगाती हो

ज़िन्दगी तुम इस तरह मुंतशिर हो


तुम मुक्कमल मंज़िल तो अधूरा रास्ता भी हो

तुम कहानियों में छुपे राज़ का आधा सच भी हो



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