स्वार्थी मनुष्य
स्वार्थी मनुष्य


क़दम-क़दम पर वार करे यहाँ,
यह कैसा इंसान है।
अपने ही तो घात करे यहाँ,
यह कैसा इंसान है।
दिखने में सब, हरिश्चंद्र है,
वास्तव में कुछ और ही है।
स्वार्थ सिद्धि में लगे हुये सब,
अपने में ही मस्त है।
लगे हुए सब, पैर खींचने में,
खुद जमकर, चलते नहीं है।
मतलब से, सब मतलब रखते,
बिन मतलब, बेकार जो लगते।
अपने हित के लिए, सदा ये
औरों को परेशान ही करते।
पैसे-पैसों के चक्कर में,
अपने को तो भूल ही जाते।
यह कैसा इंसान है।
यह कैसा इंसान है।