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Jeevan singh Parihar

Tragedy

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Jeevan singh Parihar

Tragedy

उदासियां

उदासियां

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समय का दौर है साहब ,

ज़माना कुछ ओर है साहब।


ख़्वाहिशें कुछ ही पूरी हैं ,

उम्मीदे लाखों हैं साहब ।


जरूरतें इतनी हावी हैं ,

कि सपने लाखो बाकी हैं ।


चाहत तो है चाँद पाने की ,

मगर पांव में बेड़ियाँ लाखो हैं ।


मन तो बहुत है मीठा खाने का ,

किन्तु शरीर मे शक्कर जो ज्यादा है ।


इच्छा तो है घर की मरम्मत कराने की ,

मगर पहले से घर का लोन काफ़ी है ।


तमन्ना तो है एक कार पाने की ,

लेकिन पुरानी साईकिल का पहिया जो बाकी है ।


जरूरतें इतनी हावी हैं ,

कि सपने लाखों बाकी हैं ।


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