उदासियां
उदासियां
समय का दौर है साहब ,
ज़माना कुछ ओर है साहब।
ख़्वाहिशें कुछ ही पूरी हैं ,
उम्मीदे लाखों हैं साहब ।
जरूरतें इतनी हावी हैं ,
कि सपने लाखो बाकी हैं ।
चाहत तो है चाँद पाने की ,
मगर पांव में बेड़ियाँ लाखो हैं ।
मन तो बहुत है मीठा खाने का ,
किन्तु शरीर मे शक्कर जो ज्यादा है ।
इच्छा तो है घर की मरम्मत कराने की ,
मगर पहले से घर का लोन काफ़ी है ।
तमन्ना तो है एक कार पाने की ,
लेकिन पुरानी साईकिल का पहिया जो बाकी है ।
जरूरतें इतनी हावी हैं ,
कि सपने लाखों बाकी हैं ।
