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Jeevan singh Parihar

Abstract Others

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Jeevan singh Parihar

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तबदीली

तबदीली

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मस्ती की हस्ती भी डूबी,

गई डूब यारों की टोली।


मद्धम - मद्धम डूब रहें हैं,

त्यौहारों के रंग सजीले।


डूब रही हैं बीती यादें,

जैसे डूबे पानी में पत्थर।


पल - पल की इस दौड़ में देखो,

डूब रही हैं उम्र की सीमा।


डूब रहें हैं अपने भी तो,

लेकर भागें भागें सपने।


बदल गया परिवेश जो देखो,

लगता न पहले जैसा अब।


लगता ऐसा सब कुछ ओझल ,

उजड़ा - उजड़ा सा हर एक पल।।



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