जलता हुआ दीया
जलता हुआ दीया
हर रोज़ जलाता हूँ
इक दीया तुम्हारे लिए सदा
कि तुम लौट कर
आओगी एक दिन
रोज़ तुम्हारी राह तकती हैं
यह अखियाँ --
घर के सूने द्वार पर, जिस
द्वार से गई थी तुम, पर
लौट कर अभी तक नहीं आई
स्याह काली रात में
काँप जाता हूँ यह सोचकर कि
कहीं तुम आकर लौट न जाओ
यह सोचकर कि
यहाँ रहता नहीं है कोई अब
इस लिए -- हर रोज़ जलाता हूँ
इक दीया तुम्हारे लिए सदा