Himanshu Kalia

Tragedy

5.0  

Himanshu Kalia

Tragedy

जज़्बात

जज़्बात

1 min
245


यह जो उठता है बादल

गौर किया कभी कहाँ से उठता है

किसी बूढ़े बाप के दूर बसे

बेटे की राह में मोतियाई आँख से


किसी ग़रीब माँ के ठन्डे पड़े चूल्हे में

बची खुची राख़ से

किसी एक चाय के प्याले की दूसरे को

याद करने की भाप से

किसी पुराने ज़माने के प्रेमी प्रेमिका के

बिछुड़ने की ताप से


यह यादें भी तो बादलों की तरह ही

तो होती है

कहाँ कब कैसे उमड़ उठे किस ओर

चल पड़े

ज़हन के आसमान में तफ़री करने

कोई नहीं जानता


तब तक जब तक किसी पहाड़ से

टकरा ना जाए

या जज़्बातों का भार बारिश बन के

आँखों से बह ना जाए

यादें बादल और बारिश पूरक होते है

इंसानी जज़्बातों के



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy