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Himanshu Kalia

Tragedy

3  

Himanshu Kalia

Tragedy

जज़्बात

जज़्बात

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यह जो उठता है बादल

गौर किया कभी कहाँ से उठता है

किसी बूढ़े बाप के दूर बसे

बेटे की राह में मोतियाई आँख से


किसी ग़रीब माँ के ठन्डे पड़े चूल्हे में

बची खुची राख़ से

किसी एक चाय के प्याले की दूसरे को

याद करने की भाप से

किसी पुराने ज़माने के प्रेमी प्रेमिका के

बिछुड़ने की ताप से


यह यादें भी तो बादलों की तरह ही

तो होती है

कहाँ कब कैसे उमड़ उठे किस ओर

चल पड़े

ज़हन के आसमान में तफ़री करने

कोई नहीं जानता


तब तक जब तक किसी पहाड़ से

टकरा ना जाए

या जज़्बातों का भार बारिश बन के

आँखों से बह ना जाए

यादें बादल और बारिश पूरक होते है

इंसानी जज़्बातों के



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