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KARAN KOVIND

Tragedy

4  

KARAN KOVIND

Tragedy

मजदूर

मजदूर

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मैं उन मजदूरों को देखता हूँ

उनकी दृढ़ता को

जो काम कर चुकने के समीप थे और 

शाम उनके समीप 

वे आतुर थे व्याकुल

उनमें साहस और उत्साह था

कर्म के फल का 

उनकी हाथों में बचपन से

अभी तक था तो केवल 

कलम की जगह झाड़ू

जो उनका हथियार था 

और मेरा कलम 

हम दोनों में समकलिकता थी समानता थी

हमारे काम भी एक ही थे

एक मानसिक श्रम तो दूसरा शारिरिक

सूखा मैं भी हूं सूखे वो भी

मुझे सफलता खोजना 

उन्हें भी क्योंकि सुबह के बाद

शाम वाली कविता हो या

सफलता काफी सुख देती है!




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