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Manjul Singh

Abstract Tragedy

3.9  

Manjul Singh

Abstract Tragedy

कलाइयों पर ज़ोर देकर ?

कलाइयों पर ज़ोर देकर ?

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लोग

इतने सारे लोग

जैसे लगा हो 

लोगों का बाजार

जहां ख़रीदे और बेचे

जाते है लोग

कुछ बेबस,

कुछ लाचार

लेकिन सब है

हिंसक,


जो चीखना चाहते है

ज़ोर से, लेकिन 

भींच लेते है अपनी 

मुट्ठियां कलाइयों पर ज़ोर देकर

ताकि कोई

देख न सके

बस महसूस कर सके

हिंसा को

जो चल रही है 

लोगों की

लोगों के बीच, में

लोगों से?


एक हिंसा तय है

लोगों के बीच

जो खत्म कर रही है

किसी तंत्र को

जो इन्हीं हिंसक लोगों

ने बनाया था

हिंसा,

रोकने के लिए?


लेकिन सब ने,

सीख लिया है

कलाइयों पर ज़ोर देकर

मुट्ठियां भिचना,

इन्होंने भी सीख लिया 

सभ्य लोगों की तरह

कड़वा बोलना,

गन्दा देखना और

असभ्य सुनना!


यह समझते है

खुद को सभ्य

कलाइयों पर घड़ी,

गले में टाई,

पैरो में मोज़े,

और

हाथ में जहरीली

तलवार रखने से


मैं भी रोज़ जाता हूँ

लोगों के बाजार,

तुम भी जाया करो

ऐसा ही सभ्य बनाने

ताकि तुम भी 

भींच सको अपनी मुट्ठी

कलाइयों पर ज़ोर देकर?



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