तबायफखाना
तबायफखाना
ना जाने कितनो के
घर चला करते हैं ?
तबायफखानो से
हर मुसाफिर भी यहाँ
ग्राहक लगता हैं !
बाजार की बेहद
कीमती चीज होती
हैं किसी ना किसी
औरत की आबरु !
यहाँ ना कोई गीता,
ना कुरान, ना गुरु
ग्रन्थ साहिब, ना ही
बाइबिल धर्म सभी
का एक वासना
हर शरीफ दिखने
वाला चेहरा भी
हैवानियत का नकाब़
लगाये फिरता हैं,
हर गली कूचे में
मिलते हैं कोन्ही
मारने वाले क्योंकि
उनका भी चूल्हा
तभी जलता हैं,
जब कोई कोन्ही
खाने को होता
तैयार हैं !
यहाँ मोल भाव
करना भी गुनाह
लगता हैं क्योंकि
हर तबायफखाने
की पहचान होता
हैं एक हसीन
चेहरा जिसने ख्वाब
देखा था कुलवधू
बनने का पर बनना
पड़ा उसे भी नगरवधू
पर हक हैं इन्हें
भी जिन्दगी का,
क्योंकि किसी ना
किसी के लिए पैदा
करतीं हैं लम्हा खुशी
का जब तक बँटती
रहेगी खुशियाँ
तब तक ना जाने
कितनो के घर
चलते रहेगे ?
और खुलते रहेगे
तवायफखाने !

