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Manjul Singh

Tragedy Classics Inspirational

4  

Manjul Singh

Tragedy Classics Inspirational

मुखौटा

मुखौटा

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हर घर से निकलते हैं

मुखौटे

ख़ामोशी लिए 

मैं भी निकलता हूँ।


मुखौटा बन अपने

मुखौटे के साथ

पता ही नहीं चलता

छाया और मुखौटे का

अंतर क्योकि,

चेहरा तय करता है

मुखौटे तक का महीन सफर

रहते है भयभीत सभी


रँगते है सभी अपने अपने मुखौटे

नये नये अभिनय को

मैं भी अपना मुखौटा

अकेले में देखता हूँ,

ताकि अपनी 

हैवानियत को ज़िंदा रख सकूँ


और टाँग देता हूँ

चौखट के किसी कोने पर रोज़

ताकि घर में घुसने से पहले

कोई भूल न जाये मुखौटा पहनना।


मुखौटा

मुझ इंसान

की सबसे बड़ी काबिलियत है।


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