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Manjul Singh

Romance

4  

Manjul Singh

Romance

तलाक

तलाक

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दरवाज़ों से सटी 

खिड़कियो के बगल 

में टंगे शीशे में जब 

देखता हूँ तब 

यही सोचता हूँ कि बस तुम 

एक बार यूँ ही चली आओ!


दरवाजों के पीछे लगे हैंगर

पर टंगे तुम्हारे कपड़ो को,

पर्दो के नीचे पड़ी तुम्हारी 

सैंडल को देखता हूँ तब 

यही सोचता हूँ कि बस तुम 

एक बार यूँ ही चली आओ!


दरवाज़ों के पैरों में पड़े पैरदान 

पर लिखे शब्द आपका स्वागत,

से कुछ आगे ज़मीन पर चिपके 

शुभ-लाभ को देखता हूँ तब 

यही सोचता हूँ कि बस तुम 

एक बार यूँ ही चली आओ!


तोड़ कर ज़माने के 

उस शब्द तलाक को!


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