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Anupama Gupta

Romance Tragedy

4.4  

Anupama Gupta

Romance Tragedy

गृहस्थी में खोया प्रेम !

गृहस्थी में खोया प्रेम !

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371



जानते हो 

आजकल 

मुझे तुम्हें ढूंढ़ना पड़ता है

और तुम मुझे कहाँ मिलते हो 

नन्हे से इस दिल के कोने में।

जबकि मैं तुम्हें हमेशा ही

उसी तरह विस्तृत देखना चाहती हूं।


बिल्कुल उसी तरह 

जब हम नवविवाहित थे

और पसरा रहता था 

चहुं ओर आभास तुम्हारा।

रसोई से लेकर बाहर गेट तक 

हरसूं महकती थी खुशबू तुम्हारी।

तुम घर में रहते तो 

तुम्हारी आवाज़

और घर से बाहर होने पर

तुम्हारा एहसास।


नहीं, ये 

उस समय की मात्र मेरी कल्पना नहीं

और ना ही था महज प्रेम मेरा

बल्कि ये तो प्रमाण थे 

तुम्हारी चाहत के

मेरे लिए तुम्हारी दीवानगी के।


जो मेरे ख्यालों,

मेरे एहसासों में 

घुले मिले थे, प्रिय।


लेकिन जाने कैसे बदल गया 

वो चहूं ओर व्याप्त रूप तुम्हारा

अब तो बस 

सिमट कर रह गये हो 

मेरे नन्हे दिल के कोने में

कि मुझे देनी पड़ती है दस्तक

तुम्हारी जिम्मेदारियों के किवाड़ पर।

वहां से तुम्हें 

अपने प्रेम घर बुलाने के लिए।


कहते हो अक्सर 

तुम बदल गई हो

अब वो अल्हड़ अदाएं तुममें नहीं 

खो गयी है तुम्हारी चंचलता 

हाँ, अब खो गयी है मेरी प्रेयसी

बन गई हो तुम पूरी तरह एक गृहिणी।

लेकिन यार,

मेरा भी तो वो यार खो गया है

वो दिलदार काफी दिनों से है नदारद।

सच कहो ,

क्या इन अनेकानेक 

जिम्मेदारियों ने

तुम्हें पूरी तरह गृहस्थ नहीं बना दिया ?



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