कब कौन
कब कौन
कब कौन यहाँ किसको मुस्काता भाता है।
हर शख्स ले आता दुःख की नयी नयी परिभाषा।
मानो सबने भुला दी हो हँसने की अभिलाषा।
जाने क्यों हर कोई एक-दूजे से भय खाता है।
कब कौन यहाँ किसको मुस्काता भाता है।
सब तरह तरह से रंगे हुए अपनी अपनी मस्ती में
ना देता कोई दखल यहाँ किसी दूजे की हस्ती में
दसों दिशाओं में फैला स्वार्थ अँधेरा नजर आता है।
कब कौन यहाँ किसको मुस्काता भाता है।