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Anupama Gupta

Classics Fantasy Inspirational

4.3  

Anupama Gupta

Classics Fantasy Inspirational

शुरुआत

शुरुआत

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इस पवित्र नदी के 

उद्गम स्थल पर खड़े होकर , 

नदी की इस शुरुआत को

निहारते- निहारते

मन पहुंच जाता है 

नदी के अंत तक !

जहाँ मिलती है वह सागर से.......


नहीं, अंत नहीं !

कैसे कह दूँ अंत उसे

जो फिर एक नई शुरुआत है,

नदी के सागर हो जाने की।

बेशक वहाँ खो गया नाम नदी का,

लेकिन कहाँ लुप्त हुई उसकी धारा,

क्या तुम नहीं देख पा रहे 

इन लहरों के बढ़ते जोश को,

वही धाराएं तो छिपी है इनमें , 

सागर का यह प्रवाह गतिमान हो रहा है 

वो देखो, 

दूर से आती उस नदी के प्रवाह से ही।

यह उजला-सा जल 

जो तुम देख पा रहे हो; 

क्या तुम्हें लगता है कि 

यह सागर - स्रोत का जल है? 

देखो यह वही है 

जो नदी में दिख रहा था।


सदियों - सदियों से 

इन नदियों ने ही 

अपने अस्तित्व को मिलाकर सागर में 

उसे रखा है प्रवाहमान।

इन्हीं की जलधाराएं समेटे, 

सागर जोर-जोर से उछलता रहा है 

लहरें बनकर।

जो दिख रहा है 

अथाह जलभंडार ,

नदियों ने ही 

पर्वतों से खींच -खींचकर 

उड़ेली है यह जलराशि।

मिलाकर अपने अस्तित्व को 

नदियों ने ही 

दी है व्यापकता 

सागर को।


आसान नहीं है 

खॖद को मिटाकर

दूजे को आकार देना।

आसान नहीं है 

अपने अंत को

किसी और की शुरुआत 

बना देना।

आसान नहीं है 

नदी हो जाना।


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