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chandraprabha kumar

Classics

4  

chandraprabha kumar

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असुर विराध निपात

असुर विराध निपात

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  पिता वचन गौरवात्

  राज्य तज भाई हित,

  वन वन विचरे रघुराई,

  संग सिया और लक्ष्मण भाई। 


 दण्डकवन पथरीला पथ,

 कोमल पदगामी चरण सुहाये।

 चले जायँ निरखत वन सुषमा,

 राक्षस विराध मिला मग जाता। 


 बोला  कैसे आए घोर वन में,

 साथ  लिये  रमणी  सुन्दर। 

 सिया को लिया उठाय कर में,

 बोला अपनी भामा इसे बनाऊँ। 


 राम लखन बन्धु वीर,

 विराध पर किया प्रहार,

 पर अस्त्रशस्त्र से न घात हुआ,

 तो बलपूर्वक संहार किया। 


 वर था उसको न मरेगा

 किसी अस्त्र या शस्त्र से। 

 वह था तुम्बुरु गन्धर्व जो,

 राक्षस बना था कुबेर शाप से। 


 राम के हाथों उद्धार हुआ,

 पायी अपनी गति पहली। 

 किया चरणों में प्रणाम्,

 स्वस्वरूप पा गमन किया।


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