निज वास्तविक रूप में प्रकट हो, चाहे परिस्थितियां कितनी विकट हो, निज वास्तविक रूप में प्रकट हो, चाहे परिस्थितियां कितनी विकट हो,
शब्द हैं तो गजल गीत रस छंद हैं शब्द से ही अलंकार सम्भव हुये शब्द हैं तो गजल गीत रस छंद हैं शब्द से ही अलंकार सम्भव हुये
यज्ञ अग्नि में सिर को डाला कैलाश को तब फिर वो चले गए। यज्ञ अग्नि में सिर को डाला कैलाश को तब फिर वो चले गए।
साथ पाकर किया और मेरे साथ कृपासिंधु साथ पाकर किया और मेरे साथ कृपासिंधु
भारत वर्ष की परिक्रमा करके बारह महीने में शुद्ध हो जाएँ। भारत वर्ष की परिक्रमा करके बारह महीने में शुद्ध हो जाएँ।
तो तुम सब मुझको अपनी धर्म माता कहते हो। दूसरी तरफ मेरा ही वध करके मुझको खाते हो। तो तुम सब मुझको अपनी धर्म माता कहते हो। दूसरी तरफ मेरा ही वध करके मुझको खाते ...